(1) गंगा मन्दिर :- भरतपुर। महाराजा बलवंत सिंह द्वारा निर्मित। यह मंदिर बरहदरिनुमा आकृति में निर्मित , जो मंजिलों का बना है और चौरासी खम्बों पर टिका है। इसका सामने का हिस्सा मुगल शैली व पीछे का हिस्सा बौद्ध शैली का बना। यहाँ गंगा जी की मूर्ति महाराज ब्रजेंद्र सिंह द्वारा स्थापित। मूर्ति का मुंह किले की चौबुर्जा द्वारा के तरफ उत्तर दिशा में जहाँ से राजा व रानी अपने महल से इसके दर्शन कर सके।

(2) उषा मंदिर :- भरतपुर। श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध की पत्नी के नाम पर कन्नौज के राजा महिपाल की पत्नी चित्रलेखा द्वारा बनाया गया। 

(3) लक्ष्मण मन्दिर :- भरतपुर शहर के बीचो बीच महाराज बलदेव सिंह द्वारा बनाया गया।

(4) कांमा :- भरतपुर । अन्य नाम काम्यक वन, कदम्ब वन, कामवन और ब्रह्पुरी । यहाँ पुष्टि मार्गीय वेष्णवों के आराध्य गोकुल चन्द्र जी का मंदिर।

(5) शाहपुरा का रामद्वारा :- भीलवाड़ा। यहाँ रामस्नेही सम्प्रदाय का मठ। इस सम्प्रदाय के संस्थापक श्री रामचरण जी द्वारा 1751 में मूक7 गद्दी शाहपुरा में स्थापित। इनके देहावसान के बाद अन्त्येष्टि स्थल पर रामद्वारे का निर्माण। इस समाधि के ऊपर एक बारहदरी है जिस पर बीचों बीच समाधि स्तम्भ की चौकी पर चौतीस बार र-र-र और राम-राम-राम लिखा है। इसके पश्चिम की तरफ़ शाहपुरा के राजाओं की छतरियाँ निर्मित है। यहाँ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से पंचमी तक फूलडोल का उत्सव मनाया जाता है।
  यही पास में केसरी सिंह बाहरठ और प्रतापसिंह बाहरठ की हवेली। यहां इनकी मूर्तियाँ लगी है। 23 दिसम्बर को शहीद  मेला लगता है। 

(6) सवाई भोज मन्दिर :- आसींद भीलवाड़ा में खारी नदी के किनारे 11सौ वर्ष पुराना देवनारायण जी का मंदिर । यह चौबीस बगड़ावत भाईयों में से एक सवाई भोज को समर्पित। गुर्जर जाति के लिये विशेष महत्व।

(7) धनोप माता का मंदिर :- भीलवाड़ा। ये राजा धुंध की कुल देवी। यहाँ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल दशमी तक मेला।

(8) तिलस्वां :- मांडलगढ़ भीलवाड़ा के निकट तिलस्वां महादेव मंदिर।

(9) बाईस महारानी का मंदिर :- गंगापुर भीलवाड़ा । ग्वालियर के राजा महादजी सिंधिया की पत्नी गंगाबाई की स्मृति में।

(10) मेनाल :- चित्तौड़गढ़ बूंदी मार्ग पर भीलवाड़ा में मांडल गढ़ कस्बे के निकट नीलकण्ठ महादेव / महानाल मन्दिर। यहां बहरामासी झरना । तीन नदियों का संगम (त्रिवेणी) बनास, बेड़च और मेनाल।

(11) बारहदेवर :- भीलवाड़ा में जहाजपुर कस्बे में 12 लघु देवालय 

(12) करणी माता मंदिर :- देशनोक बीकानेर । चूहों के लिये प्रसिद्ध। बीकानेर के राठौड़ राजवंश की कुल देवी । 

(13) श्री कोलायत जी :- बीकानेर । कपिल मुनि को तपोभूमि । यहाँ उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रतिपादन किया। गुरु नानक देव द्वारा भी यहाँ उपदेश दिए गये। यहाँ पास मर महर्षि च्यवन ओर दत्तात्रेय की तपोभूमि है जिसे चांदी और दियातरा के नाम से जानते है। कोलायत झील में स्नान का महत्व गंगा स्नान के बराबर है।

(14) हेरम्ब गणपति :- बीकानेर की तैतीस करोड़ देवी देवताओं की साल में हेरम्ब गणपति की मूर्ति है जिसमें गणपति मूषक की जगह सिंह पर सवार है।

(15) मुकाम तालवा :- नोखा बीकानेर। विश्नोई सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ । यहाँ जांभो जी का समाधि स्थल है।

(16) भांडासर के जैन मंदिर :- बीकानेर। इस मंदिर में 5वे तीर्थंकर सुमति नाथ जी की प्रतिमा विराजमान है। इसे भांडा नाम के ओसवाल ने बनाया। 

(17) बिजासण माता का मंदिर :- इंदरगढ़ बूंदी। इसके इंदरगढ़ माता भी कहते है।

(18) केशोरायपाटन :- बूंदी। इसका निर्माण 1601 ई में बूंदी के राजा शत्रुसाल ने करवाया।

(20) बाड़ोली के शिव मंदिर :- चित्तौड़गढ़। बामनी और चम्बल के संगम पर राणाप्रताप सागर बांध के पास भेंसरोड गढ़ में।  परमार राजा हुन ने बनवाया। 9 मन्दिरों का समूह । सबसे प्रमुख घटेश्वर महादेव का 
 
(21) मातृकुण्डिया :- राशमी चित्तौड़गढ़। इसे तीर्थो की नानी और राजस्थान का हरिद्वार भी कहा जाता है । यह चंद्रभागा नदी के किनारे पर स्थित है। यहाँ प्रसिद्ध लक्ष्मण झूला भी है। यहाँ के पवित्र जल में अस्थियाँ प्रवाहित की जाती है।

(22) असवारी माता :- भदेसर चित्तौड़गढ़। लकवे के मरीजों का इलाज होता है।

(23) समाधिश्वर महादेव :- चित्तौड़गढ़ । परमार राजा भोज द्वारा बनवाया गया । मोकल द्वारा जैता के निर्देशन में इसका जीर्णोद्धार करवाया गया। यह नागर शैली में बना है ( शिव मंदिर) 

(24) कुम्भ श्याम मन्दिर :- चित्तौड़गढ़। इसके साथ ही कलीका माता का मंदिर भी । दोनो का ही निर्माण प्रतिहार काल मे। महामारू शैली में निर्मित। कुम्भा द्वारा15वी सदी में जीर्णोद्धार । 

(25) सांवलिया जी का मंदिर :- मण्डपियां गांव चित्तौड़गढ़। काले पत्थर की श्री कृष्ण की मूर्ति। जलझूलनी एकादशी को इनको भव्य चांदी के रथ में बैठाकर पास में सरोवर में स्नान हेतु ले जाया जाता है।

(26) सुगाली माता :-1857 की क्रांति के दौरन आऊआ के ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत व उनके क्रांतिकारियो ने सुगाली माता के आशीर्वाद से ही अंग्रेजों से संघर्ष किया था । इस देवी का मंदिर आऊआ पाली में स्थित है परन्तु इस देवी की 10 सिर व 34 हाथों वाली विशेष मूर्ति वतर्मान में पाली के बागड़ म्यूजियम में स्थित है।

(27) मालासी भैरू जी मन्दिर :- चूरू। यहाँ भैरू जी की उल्टी मूर्ति लगी है।

(28) पावापुरी जैन मंदिर :- सिरोही।

(29) रोकड़िया गणेश जी :- जैसलमेर।

(30) खोड़ा गणेश :- अजमेर।