(1) गोगामेड़ी :- नोहर हनुमान गढ़ । गोगाजी का समाधि स्थल। इसको धुरमेड़ी भी कहते है। इसकी बनावट मकबरे के समान। इस पर बिस्मिल्लाह लिखा गया है। यहाँ भाद्रपद कृष्ण नवमी पर 1 माह का मेला भरता है जिसमें पशुओं का क्रय विक्रय किया जाता है।

(2) भद्रकाली मंदिर :- हनुमान गढ़ । स्थापना बीकानेर के महाराजा द्वारा। चैत्र सुदी अष्टमी और नवमी को मेला।

(3) ब्राह्मणी माता :- पल्लू हनुमान गढ़। प्रत्येक माह की शुक्ला अष्टमी को मेंला।

(4) गलता जी :- जयपुर। इसको जयपुर का बनारस, मंकी वेली भी कहते है। यहाँ गालब ऋषी का आश्रम है । इसको उत्तरी तोताद्री मानते है। कृष्णदास जी पयहारी ने रामानंदी सम्प्रदाय की पीठकी स्थापना की। पर्वत की सर्वोच्च चोटी पर सूर्य मंदिर। मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा को यहाँ स्नान का विशेष महत्व है।

(5) देवयानी :- सांभर के निकट जयपुर। इसको तीर्थो की नानी भी कहा जाता हैं। वैशाख पूर्णिमा को यहाँ स्नान का विशेष महत्व।

(6) शाकम्बरी माता :- सांभर । चौहानों की कूप देवी।

(7) शील माता :- चाकसू जयपुर। राजा माधोसिंह में बनवाया। पुजारी कुमार होता है। सेढ़ल माता व मातामाई अन्य नाम इनकी सवारी गधा है। चैत्र कृष्ण सप्तमी/अष्टमी को मेला। आराधना में ठंडा भोजन करते है। इनकी खण्डित अवस्था मे पूजा।

(8) गणेश मंदिर :- मोती डूंगरी, जयपुर। राजा माधोसिंह में बनवाया।

(9) बिडला मन्दिर :- जयपुर। उद्योगपति गंगाप्रसाद बिड़ला के हिंदुस्तान चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा निर्मित लक्ष्मी नारायण मंदिर।  एक बी एम बिडला संग्रहालय भी जिसमें भारत का औद्योगिक विकास और राजस्थानी वेशभूषा की झाकियां।

(10) श्री गोविंददेवजी मन्दिर :- जयपुर के जग निवास बाग में। गौड़ीय सम्प्रदाय का 1735 में सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित मन्दिर जिसमें व्रन्दावन से लाई गई गोविंद देव जी की प्रतिमा ।

(11) जगत शिरोमणि मन्दिर :- जयपुर। राजा मानसिंह की पत्नी द्वारा अपने पुत्र जगतसिंह की समय मृत्यु की याद में 1599 ई में निर्माण । मीरा द्वारा आराधना की जाने वाली कृष्ण जी की मूर्ति स्थापित जिसे मानसिंह चित्तौङ विजय पर लाये थे।

(12) शिला माता मंदिर :- आमेर राजप्रसाद के जलेब चौक के दक्षिण पश्चिम में स्थित। ये कच्छवाह राजवंश की आराध्या देवी । मूर्ति पाल शैली में निर्मित काले संगमरमर की जिसे राजा मानसिंह प्रथम 1604 में बंगाल से ले आये थे। वर्त्तमान मन्दिर का निर्माण सवाई मानसिंह ll द्वारा ।

(13) नकटी माता मंदिर :- जयपुर में अजमेर रोड़ पर भवानीपुर में प्रतिहारकालीन मन्दिर।

(14) जमुवाय माता मंदिर :- जमुवारामगढ़ जयपुर। निर्माण कच्छवाह वंश के संस्थापक दुल्हराय द्वारा । ये इनकी कुल देवी है।

(15) रामदेवरा :- रुणेचा जैसलमेर। बाबा रामदेव का मंदिर जो राष्ट्रीय एकता और साम्प्रदायिक सद्भावना का केन्द्र। तीर्थ यात्रीयों को जतरु कहते हैं। पुजारी तंवर राजपूत होते है। इनको कपड़े के घोड़े चढ़ाए जाते है।

(16) चुंघी तीर्थ :- जैसलमेर काकनी नदी के मध्य गणेश जी की प्रतिमा।

(17) सिरे मन्दिर :- जालौर । योगिराज जालन्धर जी की तपोभूमि जिनके नाम पर जालौर नाम पड़ा।

(18) महोदरी / आशापूरा माता मंदिर :- जालौर । यहाँ के सोनगरा चैहानों की कुलदेवी। नवरात्र में मेला।

(19) आपेश्वर महादेव :- जालौर के रामसीन गांव में गुर्जर प्रतिहार कालीन मन्दिर।

(20) चंद्रमौलेश्वर महादेव मंदिर :- झालावाड़ में चन्द्रभागा नदी के तल पर । इसको शितलेश्वर महादेव मंदिर भी कहते हैं। राजा दुगर्गन के सामन्त वाप्पक द्वारा689ई में निर्मित जो राजस्थान के तिथी युक्त देवालयों में सबसे प्राचीन। लकुलीश की काले पत्थर की मूर्ति भी विराजमान। देवालय के कीचक सर्वाधिक महत्वपूर्ण जो सभामण्डप के स्तंभो के ऊपर की बड़ी पट्टिकाओं को जोड़ने के काम आते हैं।

(21) झालरापाटन का वैष्णव मन्दिर :- झालावाड़ । इसको पद्मनाभ मन्दिर, सात सहेलियों के मंदिर, चारभुजा का मंदिर( कर्नल जेम्स टॉड द्वारा) भी कहते है। इसकी शैली कच्छपघात है अर्थात ऐसा मन्दिर जिनमें विशालकाय शिखर, स्तम्भों पर घटपल्लवों का अंकन, पंच शाखा द्वारा आदि होते है।

(22) चांद खेड़ी का जैन मंदिर :- खानपुर झालावाड़। आदिनाथ की विशाल प्रतिमा और देवालय भूगर्भ में बना हुआ है।

(23) झालरापाटन का शांतिनाथ मन्दिर :- कच्छपघात शैली में बना। काले रंग की दिगम्बर जैन प्रतिमा।

(24) चन्द्रभागा मन्दिर :- झालवाड़ । गुप्तोत्तर कालीन मन्दिर। चन्द्रभागा नदी के तट पर ।

(25) नागेश्वर पार्श्वनाथ :  चौमहला झालावाड़। जैन तीर्थंकर नागेश्वर पार्श्वनाथ की मूर्ति।

(26) एकलिंगजी मन्दिर :- कैलाशपुरी उदयपुर। निर्माण बापा रावल ने 734ई में किया। यहाँ चतुर्मुखी काले रंग की एकलिंग जी की प्रतिमा है। मेवाड़ के महाराणा इनके दिवान कहलाते है। शिवरात्रि को मेला लगता है। चैत्र अमावस्या को प्रतिवर्ष ध्वजा चढ़ाने की रस्म और हीरों का नाग चढाया जाता है।