(1) दीपनाथ महादेव का मंदिर :- प्रतापगढ़ । महारावत सामंतसिंह के पुत्र दीपसिंह ने बनवाया।

(2) भँवर माता :- छोटी सादड़ी प्रतापगढ़। चैत्र व अश्विन नवरात में मेला।

(3) सीतामाता मेला :- भगवान राम के पुत्र लव कुश का जन्मस्थल । लवकुश कुंड व वाल्मीकि आश्रम । ज्येष्ठ अमावस्या को मेला।

(4) गोतमेश्वर महादेव :- अरणोद प्रतापगढ़। गौतम ऋषि का आश्रम ।

(5) श्री नाथजी मन्दिर :- राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर राजसमंद में। वल्लभ सम्प्रदाय पुष्टिमार्गीय वैष्णव मन्दिर। मन्दिर राजसिंह द्वारा मन्दिर का निर्माण । मूर्ति कलर मर्बल् की जो मथुरा से लाई गई । यहाँ पिछवाई व हवेली संगीत प्रसिद्ध जिसमें अष्टछाप कवियों द्वारा रचित पद गाये जाते है और पखावज वाद्य का प्रयोग। श्री नाथ जी के आठ दर्शन मंगला, श्रंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, आरती, शयन। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा गोवर्धन पूजा को यहाँ भीलो की लूट नाम से प्रसिद्ध अन्नकूट महोत्सव का आयोजन जिसमें 125 मन पके चावल का पिण्ड को लूटते है

(6) द्वरिकधीश मन्दिर :- कांकरोली राजसमंद झील के पास। पुष्टिमार्गीय वल्लभ सम्प्रदाय का मंदिर। यह प्रतिमा भी मथुरा से लाई गई । 1672 ई का मन्दिर ।

(7) पिप्पलाद माता :- उनवास हल्दीघाटी राजसमन्द। मेवाड़ के गुहिल सम्राट अल्लट के समय निर्मित।

(8) गढ़बोर का चार भुजानाथ मंदिर :- मेवाड़ के प्रमुख चार स्थलों में से एक। यह पौराणिक चमत्कारी प्रतिमा । दो बार मेला होली और देवझूलनी एकादशी को। गोमती नदी के पास।

(9) घुश्मेश्वर महादेव :- शिवाड़ सवाई माधोपुर । भगवान शिव का 12वाँ अंतिम ज्योर्तिलिंग ।

(10) धुँधलेश्वर महादेव :- सवाई माधोपुर । भगवान आशुतोष का शिवलिंग । भाद्रपद कृष्ण नवमी को मेला।

(11) चमत्कार जी का मंदिर :- आलनपुर सवाई माधोपुर । भगवान ऋषभ देव की स्फटिक पाषण की मूर्ति। शरद पूर्णिमा को मेला ।

(12) गणेश मंदिर :- सवाई माधोपुर। गणेश जी के मात्र मुख की पूजा, बाकी शरीर के अंग मूर्ति में नही है मुख पर त्रिनेत्र है। देश का सबसे प्राचीन मंदिर गणेश मंदिर ।  मांगलिक कार्यो से पहले इन्हें निमंत्रण दिया जाता है। मेला गणेश चतुर्थी को जिसको चतरा चौथ भी कहते है।

(13) रामेश्वर :- राजसमन्द की खड़ांर में चम्बल , बनास , सीप नदी के संगम पर ।

(14) गुरुद्वारा बुडडा जोहड :- गंगानगर जिले के रायसिंह कस्बे के डाबला गांव में । निर्माण बाबा फतेहसिंह की देखरेख में ।

(15) खाटू श्याम जी का मंदिर :- सीकर । श्री कृष्ण का श्यामजी स्वरूप , इनके शीश की पूजा, मुखाकृति दाढ़ी मुंछ युक्त

(16) जीण माता :- सीकर रैवासा ग्राम।

(17)हर्ष नाथ का मंदिर :- हर्ष की पहाड़ी पर सीकर। इस लिंगोदभव मूर्ति में ब्रह्मा व विष्णु को शिवलिंग का आदि ओर अंत जानने हेतु परिक्रमा करते हुए बताया गया है । निर्माण विग्रहराज चौहान के काल मे 956 ई में अल्लट मानक शैव आचार्य द्वारा। इसे प्रकाश में लाने का काम सार्जेंट ई डीन ने किया। श्री हर्ष के नाम से महादेव की पूजा।

(18) दिलवाड़ा के जैन मंदिर :- सिरोही के आबू पर्वत पर पांच श्वेतांबर व एक दिगम्बर मन्दिर है। इसमे
   विमलवसिह का जैन मंदिर :- निर्माण गुजरात के चालुक्य महाराजा भीमदेव के मंत्री और सेनापति विमल शाह के द्वारा शिल्पकार कीर्तिधर के निर्देशन में 1031ई में करवाया। ऋषभ देव जी का मंदिर। यह प्राथमिक मन्दिर।
   लूणवसहि मन्दिर :- निर्माण चालुक्य राजा धवल के मंत्री वस्तुपाल व तेजपाल ने करवाया । मुख्य शिल्पी शोभन देव। इस मन्दिर में 22 वे तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की श्यामवर्णी प्रतिमा है व देराणी और जेठानी के गोखडे है।
     कुंथुनाथ का मन्दिर :- दिगम्बर जैन मन्दिर जो लूणवसहि के दायीं ओर बना है। 1449 में कुंभा ने बनवाया। पास में ही दादा जिनदत्त सूरी की छतरी बनी है।
     पितलहर या भीमाशाह का मंदिर :- यहाँ जैन तीर्थंकर आदिनाथ की 108 मन की पीतल प्रतिमा है जिस कारण इसे पितलहर कहा जाता है।

(19) ऋषिकेश मन्दिर :- सिरोही के उमरणी गांव में ऋषिकेश विष्णु का 7 हजार वर्ष पुराना मन्दिर है। इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में है। निर्माण रहा अमरीश ने किया। यही अमरावती संस्कृति का उद्भव । यहाँ भाद्रपद शुक्ला एकादशी को मेला भरता है।

(20) भद्रकाली माता मंदिर :- सिरोही।

(21) सारणेश्वर महादेव :- सिरोही में सिरवाण पहाड़ी में दुधिया तालाब के पास। देवड़ा राजकुल के कुलदेव ।

(22) रसिया बालम मन्दिर :- सिरोही । इसमे दो पाषण मूर्तियाँ जिसमें एक युवक की जो हाथ मे विष का प्याला लिये है और साथ ही युवती की मूर्ति है।

(23) कल्याण जी मन्दिर :- डिग्गी मालपुरा टोंक। निर्माण मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह के राज्यकाल में। विष्णु की चतुर्भुज प्रतिमा , मुस्लिम इन्हें कलह पीर के नाम से जानते है। यहाँ श्रद्धालु ताड़केश्वर मन्दिर जयपुर से दण्डवत लगाते आते है। इन से सम्बंधित गीत :- म्हारा डिग्गी पूरी  का राजा ......। भाद्रपद एकादशी और वैशाख पूर्णिमा को मेला भरता है।

(24) संत पीपा की गुफा :- टोड़ा टोंक। गागरोण के सन्त पीपा ने तपस्या की थी।

(25) जगत का अम्बिका मन्दिर :- उदयपुर के जगत गांव में। शक्तिपीठ कहा जाता है। इस मंदिर में दिक्पाल, यक्ष, किन्नरों के अतिरिक्त कोई भी देवता की मूर्ति नहीं है। यहाँ नृत्य गणपति की विशाल मूर्ति है। इसको मेवाड़ के खुजराहो कहते है।

(26) आहड़ के मंदिर :- उदयपुर। 10वी शताब्दी का मंदिर। यहाँ आचार्य जगच्चन्द्रसूरी को 12 साल की तपस्या के बाद जैत्रसिंह ने तपा विरुद्ध दिया जिस कारण शिष्य परम्परा तपागच्छ के नाम से प्रसिद्ध है। आहड़ का प्राचीन नाम आघाटपुर, आटपुर, गंगोदभेद था। वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र ।