प्रस्तावना अर्थात संविधान का परिचय। सर्वप्रथम अमेरिका के संविधान में लायी गयी। इससे निम्न बातें स्पष्ट होती है:-
1)संविधान का स्त्रोत:- इसमें वर्णित शब्दावली "हम भारत के लोग" दो बातें स्पष्ट करती है :-
a) संविधान का स्रोत जनता हैं।
b) भारत मे जनता की सर्वोच्चता हैं।
2)शासन का स्वरूप स्पष्ट होता है:-
(a) गणराज्य य गणतंत्र
(b) लोकतंत्र
  संसदात्मक व संघात्मक शासन का उल्लेख नही है।
(c)समाज वाद
(d)पंथनिरपेक्ष
3) उद्देश्य:-
(a) न्याय प्राप्त करना :- 3 प्रकार के न्याय का उल्लेख है सामाजिक ,आर्थिक, राजनीतिक न्याय
ये राज्य के नीति निर्देशक तत्व के अनुच्छेद 38 में भी वर्णित हैं।
(b)पाँच प्रकार की स्वतंत्रता का उल्लेख:-
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास , धर्म, तथा उपासना की स्वतंत्रता इनसभी का उल्लेख मूल अधिकारों में भी है।
(c) समानता :- दो प्रकार की समानता का उल्लेख है।
अवसर की समानता और प्रतिष्ठा की समानता(इसका उल्लेख मूल अधिकार के अनुच्छेद 18 में है ।
(द) संविधान लागू होने की तिथि :- 26 नवम्बर1949
इस दिन आंशिक रूप से लागू हुआ था।

प्रस्तावना को अर्नेस्ट बार्कर ने संविधान जी कुंजी भी कहा है।
के एम मुंशी ने इसे भारत के राजनीतिक भविष्य की कुंडली तथा ठाकुर दाश भार्गव ने संविधान की आत्मा कहा है।

प्रस्तावना में वर्णित शब्द:-
(1) अंगीकृत:- स्वीकार करना।
(2) अधिनियमित :- लागू करना ।
(3) आत्मार्पित करना:- स्वंय को संविधान  को सौपना।
(4) संप्रभुता:- भारत न तो किसी अन्य देश पर निर्भर है न ही किसी अन्य देश का डोमीनियन है अर्थात आंतरिक मामलों व बाह्य क्षेत्र में स्वतंत्र व सर्वोच्च है। राज्य में रहने वाले लोग ओर सभी संस्थाऐ इसके क्षेत्राधिकारी में आती है अतः इसके कानून को मानने के लिए बाध्य है साथ ही विदेशी संबंधों व अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं की सदस्यता के लिए स्वतन्त्र है।
(5)समाजवादी:-मूल संविधान में यह शब्द नही था 42वे संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया । इसका अर्थ है सामाजिक विषमता का उन्मूलन तथा उत्पादन ,वितरण और विनिमय के साधनों पर सामुहिक स्वामित्व । भारतीय संदर्भ में यह गांधीवादी नैतिक मूल्यों पर टिका हुआ है।
(6)धर्म निरपेक्ष/ पंथनिरपेक्षता:- मूल संविधान में यह नही था।42वे संशोधन द्वारा जोड़ा गया। इसका अर्थ है भारत का कोई राज्य धर्म नही होगा अर्थात सभी धर्मों को संरक्षण प्रदान किया जाएगा। यह गांधी जी के सर्वधर्म समभाव से जुड़ा है।
(7)लोकतांत्रिक:- अर्थात जनता का शासन जिससे जनप्रतिनिधित्व एवं जनसहभागिता के साथ संसदीय प्रतिरूप को अपनाया गया है।
(8)गणतंत्र:- अर्थात लोकतंत्र का आधार वंशानुगत न होकर निर्वाचन होगा। अर्थात राष्ट्राध्यक्ष निर्वाचित होंगे तथा इनका सामान्य जनता से नागरीकता का संबंध होगा।
(9) न्याय:- 3 प्रकार के न्याय
(a)सामाजिक न्याय :- वंचित ,उपेक्षित वर्गो की सामाजिक सुरक्षा तथा सुविधाओं तक पहुँच ,इस हेतु राज्य द्वारा संरक्षण मुलक भेदभाव का प्रावधान किया गया है।
(b)आर्थिक न्याय :- अर्थात आर्थिक अवसरों की समानता व विशेषाधिकार का अभाव।
(c)राजनीतिक न्याय:-अर्थात राजनीतिक जनसहभागिता में समानता व राजनीतिक प्रतिनिधित्व ।
(10)स्वतंत्रता
(11)समता
(12)बंधुत्व:- मानव समुदाय के मध्य एकता तथा व्यक्ति को व्यक्ति होने के नाते उसकी गरिमा की सुरक्षा।
42 वे सविधान संशोधन में अखंडता शब्द भी जोड़ दिया गया जिसके अनुसार भारतीय राज्य एक पूर्ण इकाई है जिसमे विभाजन सम्भव नही अर्थात किसी भी क्षेत्र को भारतीय राज्य से अलग होने का अधिकार नही है। भारत एक विनाशी राज्यो का अविनाशी संघ है।

प्रस्तावना से सम्बंधित मामले:- मूलप्रश्न प्रस्तावना को संविधान के भाग के रूप में स्वीकार करने या नही करने का था जिसमे सर्वप्रथम:-
(1) बेरुबाड़ी संघ मामला(1960):-इसे संविधान का भाग मानने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया तथा इसे संविधान की व्याख्या में सहायक के रूप में स्वीकार किया गया।
(2)केशवानंद भारती मामला(1973):- इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में परिवर्तन करते हुए इसे संविधान के भाग के रूप में स्वीकार किया परन्तु यह स्वतः प्रवर्तनीय नही होगी अर्थात न्यायालय द्वारा इसमे उल्लेखित सिद्धान्तों को लागू नही करवाया जाएगा न ही ये संविधान के किसी भी भाग को छायांकित करेगी ।संसद इसमे संशोधन की प्रक्रिया द्वारा परिवर्तन कर सकती है।
(3) एस आर बोम्मई मामला(1994):- अग्र फैसले को ही दोहराया गया ।
(4)LIC India वाद (1995):-यह भी इसी से संबंधित है जिसमे प्रस्तावना को संविधान का एक महत्वपूर्ण भाग स्वीकार किया गया है।

प्रस्तावना की प्रसांगिकता:-
संविधान के मूल दर्शन व आदर्शों को प्रदर्शित करती है।
सविंधान के उद्देश्यो का वर्णन करती है।