1 ) नरहड़ की दरगाह का मेला , झुंझुनूं  :-
हजरत हाजिब शक्कर बादशाह की प्रसिद्ध दरगाह झुंझुनूं के नरहड़ गांव में है ।
इसको शक्कर पीर बाबा की दरगाह के नाम से भी जानते है ।
यहाँ कृष्ण जन्माष्टमी के दिन बडा मेला भरता है।
इस दरगाह में जियारत करने वाले दरगाह में स्थित जाल व्रक्ष पर अपनी मन्नतों का धागा बांधते  है।

2 ) ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का उर्स :-
इसे  गरीब नवाज का उर्स भी कहते है।
ख्वाजा साहब की मृत्यु की बरसी के रूप में रज्जब माह की 1 से 6 तारीख तक ख्वाजा साहब का उर्स मनाया जाता है।
अजमेर के ऐतिहासिक बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ाने  के साथ ही उर्स की आंशिक शुरुआत होती है ।
इस उर्स की विधिवत जन्नती दरवाजा खोलने से होती है।
चंद्रमा के दिखाई देने के आधार पर जयादी उल्सानी माह की 29 तारीख को जन्नती दरवाजा खोला जाता है व रज्जब माह की 6 तारीख को बंद कर दिया जाता है।
इस उर्स में देश विदेश से लाखों जियारत करने आते हैं।
इस समय दरगाह में ख्वाजा साहब की शान में मुशायरा, कव्वाली और अन्य भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
ख्वाजा साहब की जीवनी और शिक्षाओं पर प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है।
अजमेर का यह उर्स देश मे सम्प्रदायिक सदभावना व राष्ट्रीय एकता का एक अनूठा संगम है ।

(3) तारकीन का उर्स , नागौर :-
नागौर जिले में सूफ़ियों की चिश्ती शाखा के सन्त काजी  हमीदुद्दीन नागौरी की दरगाह प्रसिद्ध है।
 राजस्थान में यहाँ अजमेर के बाद दूसरा सबसे बड़ा उर्स का मेला भरता है।

(4) गलियाकोट का उर्स , डूंगरपुर :-
डूंगरपुर में माही नदी के निकट स्थित गलियाकोट में दाउदी बोहरा सम्प्रदाय का एक प्रमुख तीर्थ है।
यहाँ फ़ख़रुद्दीन पीर बाबा की मजार है।
यहाँ हर वर्ष उर्स का मेला आयोजित किया जाता है।