दीवारों पर किये गये सृजनात्मक चित्रण ओर अलंकरण भित्ति चित्रण कहलाते हैं।
इसी भित्ति चित्रण के कारण शेखावाटी क्षेत्र को राजस्थान की ओपन आर्ट गैलेरी कहा जाता है। इन चित्रों में तिथि ओर रचनाकार के नाम भी लिखे है। इन भित्ति चित्रों में लोक जीवन की झाँकी सर्वाधिक देखने को मिलती है। इस क्षेत्र में भित्ति चित्रों में चित्रण हेतु कत्थई, नीले और गुलाबी रंगों का प्रयोग मुख्य रूप से किया गया है। प्रमुख भित्ति चित्रकारों में बालूराम चेजारा, तनशुख, जयदेव आदि प्रमुख हैं।
 

स्त्री चित्रण में बलखाती बालों की लट का एक ओर चित्रांकन शेखावाटी शैली की विशेषता है।
शेखावाटी में उदयपुरवाटी की जोगीदास की छतरी के भित्ति चित्र शेखावाटी शैली के भित्ति चित्रों में सर्वाधिक प्राचीनतम उदाहरण है, जिसके चित्रकार देवा थे।
भित्ति चित्रों की दृष्टि से राजस्थान का कोटा बूंदी क्षेत्र सर्वाधिक विकसित है।
बूंदी के भित्ति चित्रों के लिये चित्रशाला प्रसिद्ध है इसका निर्माण रजाव उम्मेदसिंह ने करवाया। अन्य उदाहरणों में रजाव छत्रशाल द्वारा निर्मित रंगमहल  व बादल महल  भी सराहनीय है।
कोटा में महाराजा उम्मेद सिंह के समय झाला झलिमसिंह द्वारा बनाई गई झाला हवेली अपने आखेट चित्रों के लिये प्रसिद्ध है।

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भित्ति चित्रण की विभिन्न विधियाँ :-
1) फ्रेस्को बुनो :- ताजी पलस्तर की गई नम भित्ति पर किया गया चित्रण। राजस्थान में इस पद्धति को अलागिला या आरायश कहा जाता है। शेखावाटी क्षेत्र में इसको पणा नाम से भी पुकारा जाता है। इसमे भित्ति तैयार करने के लिए राहोली का चूना सर्वोत्तम माना जाता है। इस पद्धति में अकबर और जँहागीर के द्वारा अधिक रूचि ली गई। यह पद्धति इटली से भारत लाई गई। जयपुर के राजाओं के मुगलों से सम्बन्धों के कारण यह जयपुर में आई और यही से शेष राजस्थान में फैली।
2) फ्रेस्को सेको :- इस विधि में भित्ति पर किये गये पलस्तर के पूर्ण रूप से सूखने पर उस पर चित्रण किया जाता है।
3) साधारण भित्ति चित्रण :- यह सीधे ही किसी भित्ति पर किया गया चित्रण है।

इन भित्ति चित्रों में मुख्यतः राजसी वैभव, महफ़िल, उद्यान विहार, रनिवास प्रेमलीला, धार्मिक चित्र, शिकार व युद्ध के चित्र, लोक देवताओं, प्रेमआख्यानों, राधा कृष्ण की लीलाओं आदि का चित्रण किया जाता है।